“प”
तुम्हारे सुरों में
“प”की कमी है,शायद।।
“म” के बाद ध’ से पहले,
कुछ रह गया,है शायद।
“प”
“मै भी ठहर गई थी शायद,
बिन पुछे,बिन बुलाये
कैसे आ जाऊँ!!
चाहती तो थी,तेरी कमी को पूरा कर जाऊँ!!
पर सोचा करती हूँ,तुमने ही कहा
तुम्हें पूरा पूरा कभी नहीं चाहिए !
यंकिं जानो,सिर्फ़ मेरे ना होने से तुमहारे ख़ज़ाने मे ,
तुम कंगाल हो,
मेरे ना होने से तुमहारे सूरो में, तुम बेताल हो!!
मेरे ना होने से तुम्हारी रचनाओं में ,
कुछ अधूरा सा लगता है
सुनो,तुमहारा दिल चाहे तो पुरी कर लो अपनी अधूरी रचना,
मुकम्मल कर लो अपना संगीत
और फिर भर लो अपने ख़ज़ाने को!!जब जी चाहे,
बाहर झाँकना,”प”तेरी देहरी पर ही खड़ी इनतजार कर रही है।
प्रियंका सिन्हा