कालजयी उपन्यास ‘ त्यागपत्र ‘ के आवरण पर मेरा चित्र

महान कला से मिलना संयोग नहीं होता,आपको पात्र बनना पड़ता है, वह भी खाली। सौभाग्य की बात है कि आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रेमचन्द के बाद सबसे बड़े कथाकार जैनेंद्र कुमार जी द्वारा 1936 में लिखित ‘त्यागपत्र’ उपन्यास पढ़ने का मौका मिला। यह उपन्यास अपने संक्षिप्त कलेवर में पचासी सालों के बाद भी हिंदी ही नहीं, समूची भारतीय भाषाओं में कालजयी बना हुआ है। यह भाग्य की बात है कि सेतु प्रकाशन ने मेरे और जैनेंद्र जी के बीच सेतु का काम किया है। इस कालजयी उपन्यास के आवरण पर मेरे द्वारा बनाई कलाकृति छाप कर, जो मेरी ”shades of life” श्रृंखला से लिया गया है।

मुझे लगता है कला भी आपको परखती है, सरल मार्ग भी देती है पर हम अपने अभ्यास के आधार पर उसको कठिन मान लेते हैं। सभी से अनुरोध है कि एक बार ‘त्यागपत्र’ अवश्य पढ़ें। मेरा विश्वास है कि सबको इससे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा।

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