आस में बैठी

आज जाने क्या बात हुई
कभी मैंने कभी तुमने याद किया
सिल-सिला कुछ बन ना पाया
आज जाने क्या बात हुई
खिड़की के बाहर झांकते कब शाम ढली
अंधेरे ने दी दसतक, खामोश जुगनूओं की हंसी,
कभी मैंने कभी तुमने याद किया
हवा हसते कह निकली तु कब झुमेगी?
नदी कहते बह निकली,,तु कब बहेगी?
बारिश भी अब पिछे कयुँ रहती
कब बरसोगी पुछ आगे हो निकली
हसते मुझपर सब ,मैं पि मिलन की आस में
दिप जलाऐ बैठी,,
श्रिंगार किया नौलाखा भी पहना
चुड़ियाँ भर के हाथों में ,बिंदी माथे से सजाई
आस लगाए,पि मिलन की
पैरों में पायल आलता भी लगाए
आज हंस ही दूगीं मैं भी उन सब पर ,
जो हंसतें है मुझपर
यह आस लगाए,

पि मिलन को बैठी
आज जाने क्या बात हुई
पर वो ना आऐ
अब झिंगुर की झिंग ने देदी दसतक
करवटों में रात गुजरी
पर वो ना आऐ
आज जाने क्या बात हुई
कभी मैंने कभी तुमने याद किया
प्रियंका सिन्हा

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